प्रेमचंद यानी कहानियों के सम्राट। लेकिन जिन्हें हम प्रेमचंद के नाम से जानते हैं, उनका असली नाम धनपत राय है। उनके चाचा उन्हें नबाव बुलाते थे, तभी उनकी शुरुआती रचनाएं नबाव नाम से भी हैं। लेकिन अपने एक दोस्त के सुझाव पर उन्होंने प्रेमचंद उपनाम रख लिया। जिसके बाद उनकी हर रचना इसी नाम से प्रकाशित हुई। साल 1880 और तारीख थी- 31 जुलाई, जब बनारस के एक छोटे से गांव लमही में उनका जन्म हुआ था। माता का नाम आनन्दी देवी और पिता मुंशी अजायब राय लमही के डाकघर में काम करते थे।
8 साल की उम्र में मां को खो दिया। और 15-16 साल की छोटी उम्र में उनकी शादी हो गई। लेकिन कुछ दिन बाद ही, उनके पिता भी चल बसे। और घर की पूरी जिम्मेदारी उन पर आ गई। इस फाइनांशियल स्ट्रगल में, उन्हें अपनी किताबें तक बेचनी पड़ गई। 1905 में उन्होंने एक बाल विधवा से दूसरी शादी की, जिससे उनके 3 बच्चे हुए- श्रीपत राय, अमृत राय और बेटी कमला देवी। वो अध्यापक भी रहे हैं। इसी कारण उन्हें मुंशी प्रेमचंद जी कहा जाता है। दरअसल, पहले के समय में अध्यापकों को मुंशी कहते थे। 1921 में महात्मा गांधी जी के असहयोग आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए, उन्होंने स्कूल इंस्पेक्टर की नौकरी छोड दी थी। उनकी 300 कहानियां, 14 उपन्यास और 3 नाटक हैं, जिनका लगभग, हर भाषा में अनुवाद हुआ है। 56 साल की उम्र में, 8 अक्तूबर 1936 में हमने, हिंदी साहित्य के इस सम्राट को खो दिया, लेकिन अपनी रचनाओं के जरिए वो आज भी जीवित हैं। उनके साहित्य पर फिल्में भी बनी हैं। शतरंज के खिलाड़ी, कफन, गोदान, और गबन पर फिल्में और निर्मला उपन्यास पर टीवी सीरियल बना है।
उन्होंने चांद, सुहाना मौसम, विकास या चकाचौंध को नहीं, बल्कि मजबूर गरीब तबके को अपनी कहानियों में प्राथमिकता दी। क्योंकि उन्होंने अपनी पर्सनल जिंदगी में भी गरीबी जैसी कई समस्याएं देखी थीं। आज उनकी जयंती पर, आइए मुंशी प्रेमचंद जी को याद करें, जिनकी कलम ने उस दौर की आम जनता के दर्द को शब्दों में पिरोने का साहस जुटाया। द रेवोल्यूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से आप सभी को, मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।